उस झील किनारे क्या होगा
होगा तो मेरा पता होगा
ये दिन जो यूँ ढल रहा है
किस ख्याल में न जाने
पल रहा है
ये रात जो बस होने को है
इक सवाल जो कहीं खोने को है

सिन्दूरी शाम जो यूँ बेवफा हो गयी
ढल रात में न जाने कहाँ खो गयी
आदतों से आगे का रास्ता भूल गए
मंज़िल और मंज़िल का वास्ता भूल गए
भीड़ में चल रहा है क्यों
क्यों खुद को समझता तू नहीं
जिस मक़सद से शुरू की थी ज़िन्दगी
वो मक़सद न जाने कहाँ होगा
उस झील किनारे क्या होगा
होगा तो मेरा पता होगा

अब तो आंसू भी थक कर सूख गए
अपने भी यूँ बेवजह रूठ गए
किस्मत ने मुह मोड़ लिया
प्यार ने वादा तोड़ दिया
कोशिशों के आगे की सड़क का
अंजाम न जाने क्या होगा
उस झील किनारे क्या होगा
होगा तो मेरा पता होगा

© Mehek – 2015


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